यह कंकड़ पत्थर रेत नहीं यह तो माता है माता है

युग-युग से रक्त लिए आता यह देश -धरम का नाता है
यह तो माता है माता है यह कंकड़ ।

पुत्रों की बाहों का बल ही
है मापदण्ड अधिकारों का
जिसके चरणों में साहस है
वह बनता स्वामी तारों का
पर जिसकी होती परंपरा -
घर उसका ही कहलाता है
यह देश...

समझौते सौदेबाजी से
माता का न्याय नहीं होता
जिसमें मृग-नायक भाव भरा
वह सिंह-सुवन जगता-सोता
पौरुष का प्रखर प्रभाव लिये
माता का नाम बढ़ाता है
यह देश...
.
माता के प्रश्न न हल होते
कायर जन के संख्या बल से
इकला दिनकर तम को हरता
लाखों जुगनू से बढ़कर के
जिसमें है सर्वदमन का बल
वह भारत-भाग्य विधाता है
यह देश धरम का नाता है
यह कंकड़ पत्थर रेत नहीं यह तो माता है माता है
युग-युग से रक्त लिये आता यह देश-धरम का नाता है।



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